मन पर आत्मा की हुकूमत चलाने का प्रयास करें :- गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि

||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 22-OCT-2023 || अजमेर || संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि आज आयंबिल ओली का तीसरा दिवस है ।आज नमो आयरियाणाम,आचार्य जी को नमस्कार करने का दिन है।आचार्य जी को नमस्कार क्यों किया जाता है?क्योंकि यह पांच महाव्रत और पांच आचार का स्वयं पालन करते हैं और दूसरों को भी पालन करवाते हैं। जो स्वयं भी पाप से मुक्त होते हैं और दूसरों को भी पाप से मुक्ति का मार्ग बताते हैं। 18 पापों के माध्यम से हमारी निरंतर पाप पर चर्चा चल रही है। सोलवा पाप है रति अरति। रति का अर्थ रुचि और अरति का अर्थ अरुचि से है। क्या रुचि और अरुचि का होना भी पाप है? तो भगवान फरमाते हैं कि अगर तेरी रुचि राग द्वेष में,भोग में, कसाय में, संसार वृद्धि के कारणों में है तो यह रति का पाप है। और तुम्हारी अरुचि संवर साधना में,तपस्या, त्याग, व्रत,नियम, प्रत्याखानों के प्रति है। तो यह अरति पाप है। आप बहुत भाग्यशाली है जो आपकी सामायिक में रुचि है। अभी सभी घरों में साफ सफाई आदि के कार्य चल रहे हैंफिर भी आप उसमें से समय निकालकर जिनवाणी सुनने आए. मगर आपकी पूर्ण संयम की रुचि भी है या नहीं? अगर है तो फिर कौन मना करता है। जवाब आया मोहनिय कर्म आगे आया हुआ है। अरे मोहनीय कर्म आदि आया हुआ है या पुरुषार्थ में कमजोरी है। मोहनीय कर्म तो स्वयंभगवान महावीर के भी आगे आया था। मगर फिर भी वह आत्मा के उत्थान के लिए आगे बढ़े। साधना में,धर्म में जब-जब अरुचि हो तो उसे छोड़े नहीं। आप कहते हैं कि आज मेरी उपवास में, एकासन में, त्याग में,सामायिक में रुचि नहीं है। ऐसा भाव जब भी आए तो दृढ़ संकल्प करें कि आज तो उपवास, एकासन, सामायिक आदि करना ही है।आपके मन के ऊपर आपकी आत्मा की हुकूमत चलाने का प्रयास करें। आदमी रति के पापों में क्यों जाता है?बाहरी आकर्षण को देखकर, अधर्मी जनों को संसार में मस्ती करते देखकर और धर्मी जनों को संसार में कष्ट पातें देखकर व्यक्ति उलझ जाता है। रति अरति के परिणाम में व्यक्ति को दुख, पीड़ा, कष्ट और अशांति का सामना करना पड़ता है। रति अरति के पाप से बचने के लिए व्यक्तियों को अच्छा सत्संग व साहित्य को पढ़ने का प्रयास करना चाहिए। धर्ममय जीवन जीते हुए वैराग्य और संसार से उदासीनता के भाव को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। धर्म और धर्म में रुचि के परिणामों को सुख विपाक व दुख विपाक के अध्यायों में बताया गया है कि,धर्म से सुख व अधर्म से व्यक्ति को दुख प्राप्त होता है। अतः इस पाप से यथासंभव बचने का प्रयास करें। आज दिन तक और आज से पूर्व में हुए रति और अरति संबंधी पापों का, भगवान की साक्षी से,गुरुदेव की साक्षी से, अपनी आत्मा की साक्षी से मिच्छामी दुक्कडम देते हुए प्रायश्चित करने का प्रयास करें।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा। आज की धर्म सभा में आगामी 2024 के चातुर्मास हेतु विजयनगर श्री संघ से पधारे श्रद्धालुजनों ने भाव भरी विनती गुरु चरणों में रखी। धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्यदर्शन मुनि ने भी संबोधित किया। धर्म सभा का संचालन बालवीर पीपाड़ा एवं हंसराज नाबेड़ा ने किया।

Comments

Popular posts from this blog

क़ुरैश कॉन्फ्रेंस रजिस्टर्ड क़ुरैश समाज भारत की अखिल भारतीय संस्था द्वारा जोधपुर में अतिरिक्त जिला कलेक्टर दीप्ति शर्मा को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौप कर सूरसागर में आये दिन होने वाले सम्प्रदायिक दंगों से हमेशा के लिये राहत दिलाने की मांग की गई है।

अजमेर जिला बार एसोसिएशन की नव निर्वाचित कार्यकारिणी ने किया पदभार ग्रहण

सीनियर सिटीजन यदि हर आधे घंटे में अपना स्थान बदलें और हाथ पैर चला लें तो ऑपरेशन की आवश्यकता ही नहीं रहेगी