किसी को कलंकित करने का प्रयास आत्मघातक -- गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि
||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 20-OCT-2023
|| अजमेर || संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि आज आयंबील ओली का प्रथम दिवस है। इस दिन प्रथम पद नमो अरिहंतानम की साधना की जाती है। प्रश्न उठता है कि अरिहंत कौन है ? जिन्होंने चार घनघाती कर्मों का क्षय किया, वह अरिहंत कहलाते हैं।पहले पद में आता है कि अरिहंत 18 दूषण से रहित होते हैं। इन 18 पापों का त्याग किए बिना अरिहंत नहीं बना जा सकता है ।
13वां पाप है,अभ्याख्यान ।दूसरों पर झूठा आरोप लगाना, झूठा कलंक लगाना , अभ्याखान कहलाता है।
किसी पर झूठा आरोप क्यों लगाया जाता है? इसके भी कारण है,पहला कारण है कि व्यक्ति स्वयं को बचाने के लिए किसी दूसरों पर झूठा आरोप लगा देता है।जैसे कोई बच्चा हो उससे कोई गलती हो जाए या कोई चीज टूट जाए तो वह अपने आप को बचाने के लिए दूसरों का नाम ले लेता है ।आप लोग भी व्यापारी लोग हैं अपने आपको बचाने के लिए वकील आदि से सलाह लेते हैं ।इस तरह व्यक्ति गलियां निकालता है।
ईर्ष्या व दूसरों की प्रगति को देखकर, उसको गिराने व उसे नीचा दिखाने के लिए व्यक्ति दूसरों पर झूठा आरोप लगता है। गलतफहमी के कारण या मार के डर से भी व्यक्ति किसी पर अभ्याखान लगा देता है। मगर दूसरों पर आरोप लगाने वाले को इसका परिणाम कभी ना कभी अवश्य भुगतान पड़ता है। कहते हैं कि सीता के जीव ने पूर्व भव मे किसी संत के ऊपर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था,जिसके परिणाम स्वरुप उन पर भी धोबी द्वारा आरोप लगाया गया।
अभ्याख्यान का परिणाम आता है कि वह व्यक्ति सबका अविश्वसनीय बन जाता है।क्योंकि कोई भी व्यक्ति उसके सामने अगर किसी की बुराई कर रहा है तो मान के चलिए की कल हो सकता है कि वह आपकी बुराई भी दूसरों के सामने करने लग जाए। अतः ऐसे व्यक्तियों से दूर रहने का प्रयास करें। वह व्यक्ति अच्छे संस्कारों से नीचे गिर जाता है। इसको उच्च गति में वंचित होना पड़ता है। और वह भी कलंकित होता है। अतः भूल कर भी किसी पर बड़ा कलंक लगाने का प्रयास न करें।
और जब कभी आप पर भी कलंक लगता हो तब वह गलती के स्वीकार भाव में आ जाए। क्योंकि अपनी गलती को स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है। गलती मानने से बात वहीं पर खत्म हो जाती है। इसी के साथ दूर दृष्टि पूर्वक परिणाम को ध्यान में रखते हुए अपनी समझ को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
इन सभी बातों को जानकर भगवान की साक्षी से,गुरुदेव की साक्षी से, अपनी आत्मा की साक्षी से ,आज दिन तक और आज से पूर्व के समस्त अभ्याख्यान संबंधी पापों का मिच्छामि दुकडम देते हुए प्रायश्चित करने का प्रयास करें। अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।
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