"क्या याद रखना,क्या भूल जाना" गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि
||PAYAM E RAJASTHAN NEWS|| 25-AUG-2023
|| अजमेर || संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि जीवन में याद रखना जरूरी है या भूलना जरूरी है ?कुछ श्रद्धालुजनों ने फरमाया याद रखना जरूरी है, और कुछ ने कहा कि भूलना जरूरी है। तब गुरुदेव श्री जी फरमाते हैं की याद रखना भी जरूरी है और भूलना भी जरूरी है ।याद किसे रखना ?तो याद रखें ,उपकारी के उपकार को ,सहयोगी के सहयोग को ,माता-पिता और गुरुजनों का जो हमारे ऊपर असीम उपकार है, हमें सदैव उसको याद रखना। चाहिए।क्योंकि जिस व्यक्ति में यह कृतज्ञता के भाव मौजूद होंगे उसी को अपने कर्तव्य का बोध होगा। लेकिन उपकारी के उपकारों का जो व्यक्ति भुला देता है उससे बड़ा कृतघ्न और पापी व्यक्ति संसार में कोई नहीं होता है।
मगर आज की इस भौतिकतावादी संस्कृति में व्यक्ति माता-पिता और गुरुजनों के उपकारों को भूलकर उनकी उपेक्षा करने और उनसे अलगाव करने को भी तैयार हो जाता है। वह अपने कर्तव्यों को भी भुला देता है ।जबकि भूलना तो यह है कि अगर मैंने किसी को सहयोग दिया हो, किसी पर उपकार किया हो।अगर हम हमारे द्वारा किए गए सहयोग को याद रखेंगे तो हो सकता है कि उससे हमारा अहंकार बढ़ जाए। और यह अहंकार कई हमारी उन्नति में बाधक नहीं बन जाए ।पुराने जमाने में भी व्यक्ति परोपकार के कार्य करते थे,लेकिन उनको किसी भी नाम या सम्मान की चाहना नहीं रहती थी। उनके द्वारा किए गए सहयोग के तरीके विभिन्न थे। वह दानशालाएं खोलते तो पर्दा लगाकर दान देते,ताकि खुद को वह सामने वाले को एक दूसरे की सूरत नजर नहीं आए। कोई जरूरतमंद छाछ लेने घर पर आता तो उसमें सोने/ चांदी की मोहरे डाल देते ।"नेकी कर दरिया में डाल "इस भावना से वह सहयोग करते की एक हाथ से अगर दान दिया जा रहा है या सहयोग किया जा रहा है तो वह दूसरे हाथ को भी मालूम नहीं पड़ना चाहिए ।उनकी सोच थी कि जो कुछ इस प्रकृति से हमें मिल रहा है, उसे वापस प्रकृति को ही समर्पित कर दिया जाना चाहिए ।
और क्या भुला देना चाहिए तब गुरुदेव फरमाते हैं अगर किसी ने हमारा अपमान तिरस्कार किया या कटु वचन बोला तो उनको भी भुला देना चाहिए। जैसे कि महात्मा बुद्ध ने अपने को गालियां देने वाले ब्राह्मणों की गलतियों को भुला दिया ।बुद्ध हो ,महावीर हो या आत्मा को कोई भी परम पद ऐसे ही नहीं मिल जाते उसके लिए क्षमा, सहिष्णुता, उदारता और करूणायुक्त जीवन का होना परम आवश्यक होता है ।हम भी इन महान आत्माओं के जीवन से शिक्षा लेकर जो याद रखना है, उसे याद रखें ,और जिसे भूल जाना है ,उसे भूल जाने का प्रयास करें ।अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रहा तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा ।
आज की धर्म सभा में सरेड़ी सरवाड़ सहित कई जगहों से श्रद्धालु पधारे, जिन्होंने क्षमा याचना के भाव व्यक्त किये। तपस्वी साधक साधिकाओं ने बडी तपस्याओं के प्रत्याखान करके संघ के गौरव को बढ़ाने का प्रयास किया ।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा वह हंसराज नाबेड़ा ने किया।
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